बदलता छत्तीसगढ़/रायगढ। 7सौ एकड़ की कृषि उपजाऊ भूमि पर जब 7हजार करोड़ के प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिली।तब इसे क्षेत्र के विकास और रोजगार के लिये सबसे बड़ी जीत का दावा किया गया।इस दौरान मोनेट से जेएसडब्ल्यू बनी कम्पनी ने मुनाफे की ऊंचाइयों को भी छुआ,लेकिन फिर भी कारखाने के लिए अपनी खेती जमीन को देने वाले उन 52 लैंड लूजर पर ध्यान नही दिया गया,जिनके लिए जमीन मतलब पूरे परिवार के पेट पालने का इकलौता जरिया था। लैंड लूजर ने रोजगार की आस में कारखाना मैनेजमेंट से लेकर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के दरवाजे को भी खटखटाया,लेकिन इन्हें कुछ नही मिला तो वह था इंसाफ। इंसाफ की खातिर दर दर भटकने वाले बेरोजगार ग्रामीणों की संख्या नहरपाली या फिर भूपदेवपुर तक ही सीमित नही है।बल्कि सिंघनपुर, रक्सापाली, सलिहाभांटा, लोढाझर,तिलाइपाली, बिलासपुर,कुररुभाटा,दर्री,बेलपाली ,किरितमाल जैसे एक दर्जन गांवों में यह स्थिति देखी जा रही है।।
लोकल होना बन गया है अभिशाप
इन कारखानों में दूसरे प्रांतों से आने वाले लोगों के लिए दरवाजे खुले कर दिए गए है।इन्हें मैनेजर से लेकर जीएम जैसे उच्च पदों पर आसीन किया गया है। लेकिन बात जब लोकल शिक्षित बेरोजगारों को नौकरी देने की आती है तो योग्यता होने के बावजूद सिर्फ लोकल होने के कारण प्लांट का दरवाजा बंद कर दिया जाता है।
आउटसोर्सिंग पर पूरा ध्यान
कम्पनी के विकास और रोजगार पर पहला हक स्थानीय प्राभावित ग्रामीणों का है। जमीन खरीदने के दौरान सरकार के साथ प्रबंधन ने बकायदा करार भी किया था।लेकिन प्लांट स्थापना के बाद इन वायदों को तिलांजलि दे दी गई है। रिक्वायरमेंट के लिए मैनेजमेंट पूरी तरह से आउटसोर्सिंग पर ही निर्भर है। आउटसोर्सिंग के खेल को पूरी तरह से सफल बनाने साक्षात्कार का खेल राजधानी रायपुर के किसी बड़े होटल में बड़े तामझाम के साथ जाता है। जंहा छत्तीसगढ़ के लोगों को योग्य होने के बाद भी फैल कर दिया जाता है वही अयोग्य होने पर भी दूसरे प्रदेशों के युवाओं को आसानी से नौकरी में रख लिया जाता है।।।
क्या कहते है मुखिया
प्रभावित गांव के सरपंच प्रतिनिधि बंशीधर खड़िया का साफतौर से कहना है कि जेएसडब्ल्यू की दादागिरी और मनमानी पर अब ब्रेक लगाना बेहद जरूरी है।जल जंगल जमीन हमारी फिर भी रोजगार और विकास दुसरो को दिया जा रहा है। आउटसोर्सिंग कर बाहरी लोगों को नौकरी दिया जा रहा है और लोकल बेरोजगारों को योग्य होने के बाद भी नौकरी में नही रखा जा रहा।ओडिसा,बिहार यूपी और अन्य प्रदेशो से आए कम्पनी के अधिकारी अपने रिश्तेदारों, अपने गांव के लोगों को रोजगार और ठेका दे रहे है। हमारा साथ न तो जनप्रतिनिधि दे रहे है और न ही प्रशासन। हमारे हिस्से सिर्फ और सिर्फ चिमनी से निकलने वाला काला धुंआ ही जिसे थोक में परोसा जा रहा है।