


बदलता छत्तीसगढ़।रायगढ। राजस्व बेहद अहम विभाग है।डिसीजन लेने में गभीरता बरतना बेहद जरूरी है।क्योंकि जमीन से जिंदगी जुड़ी है और कलम से जिंदगी। उक्त बातें बदलता छत्तीसगढ़ के साथ मुखातिब होते हुए खरसिया की नवांगतुक तहसीलदार श्रीमती अनुराधा पटेल ने चर्चा के दौरान कही। उन्होंने आगे कहा कि परिस्थितियां चाहे जैसे भी रहे आम लोगों की सेवा करना उनका प्रमुख लक्ष्य है।वर्ष 2013 में ओपी जेआईटी से मेटरालॉजी में इंजीनियरिंग करने वाली तहसीलदार अनुराधा मूलतः रायगढ़ जिले के सारंगढ़ परसकोल गांव की बेटी है।प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा रायगढ के ही सरस्वती शिशु मंदिर और कार्मेल स्कूल में हुई है। बचपन से टेक्नोलॉजी में रुचि और किताबे पढ़ने के शौक ने उन्हें प्रशासनिक सेवा की ओर आकर्षित किया।यह इसका ही असर था कि वर्ष 2016 में पीएससी के अपने पहले ही प्रयास में सफलता प्राप्त हुई। बतौर नायाब तहसीलदार के रूप में पहली पोस्टिंग जशपुर जिले में हुई,जिसके बाद जांजगीर और रायगढ़ जिले में भी काफी समय तक वह रही।
पेशी से लोगों को मिलेगी मुक्ति
पेशी दर पेशी लगाकर थक चुके लोगों को अब राहत की उम्मीद है।दरअसल खरसिया की नई तहसीलदार अनुराधा पटेल ने लोगों को पेशी से मुक्ति दिलाने पुरानी पेंडेंसी फाइलों का त्वरित रूप से निराकरण करने की बात कही है।इसके लिए विशेष कार्ययोजना तैयार की गई है,जिसे आने वाले दिनों में मूर्त रूप दिया जाएगा।
जिंदगी में बैलेंस बनाना बेहद जरूरी
अपने माता पिता की इकलौती संतान तहसीलदार अनुराधा की शादी जांजगीर के सारागांव कुरदा में हुई है।पति जांजगीर में ही भू अभिलेख अधिकारी है। उनकी एक छोटी बेटी है। लेकिन व्यस्त शेड्यूल और प्रशासनिक कामकाज के दबाव के बीच परिवार को समय दे पाना काफी मुश्किल होता है।लेकिन सामंजस्य और समझौता ही वह रास्ता है जिसके बलबूते वह अपने कर्तब्यों का निर्वहन बखूबी कर पाती है।
10 साल से बिछड़े परिवार को कोर्ट रूम में गले मिलाया
अनुराधा की बाराद्वार तहसील में हुई उसी समय एक ऐसा प्रकरण सामने आया।जिसमें बटवारे को लेकर एक ही परिवार के लोग पिछले 10 सालों से बातचीत नही किए थे।उनके मतभेद छोटे थे, फिर रिश्ते टूट रहे थे।ऐसे में तहसीलदार कोर्ट में ही पहले तो दोनों पक्षो को आपस मे गले मिलाया और फिर दोनों के बीच आपसी समझौता कराते हुए प्रकरण का निराकरण कराया।
जब मजबूर पिता की आंखों से गिरे खुशी के आंसू
जशपुर कुनकुनी में पदस्थापना के दौरान जमीन विक्रय अनुमति का मामला दो सालों से अटका हुआ था। जमीन विक्रय न होने पर गरीब बूढ़े पिता के पास पैसा के नाम पर एक ढेला नही था। जबकि उसे पैसों की सख्त जरूरत थी।क्योंकि उसी समय उसके इकलौते बेटे का एक्सीडेंट हो गया था।इलाज में काफी पैसा खर्च हो रहा था। अब जमीन बिक्री से मिलने वाले पैसे से ही उसके बेटे का इलाज और जिंदगी जुड़ी हुई थी। मामले की गंभीरता और उसकी जरूरतों के मद्देनजर उस प्रकरण का त्वरित रूप से निराकरण कर बुजुर्ग पिता की जिंदगी में खुशियां लाना तहसीलदार अनुराधा अपने जीवन का अहम निणर्य मानती है।